हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 171 ☆ # “रंगों सा छल ही जायेगा” # ☆ श्री श्याम खापर्डे ☆

श्री श्याम खापर्डे

(श्री श्याम खापर्डे जी भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी हैं। आप प्रत्येक सोमवार पढ़ सकते हैं साप्ताहिक स्तम्भ – क्या बात है श्याम जी । आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता रंगों सा छल ही जायेगा) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ क्या बात है श्याम जी # 171 ☆

☆ # कविता – “रंगों सा छल ही जायेगा” # ☆ 

यह रंगों का मौसम

रंगों सा छल ही जायेगा

सहेज लें इस वक्त को बंदे

वर्ना यह पल निकल ही जायेगा

*

चाहे फौलाद सा तन हो

पाषाण सा कठोर मन हो

संघर्षों का भारी घन हो

वक्त के निर्मम थपेड़ों से

दहल ही जायेगा

यह रंगों का मौसम

रंगों सा छल ही जायेगा

*

शब्दों में तेरे दम हो

सिने में तेरे ग़म हो

आंखें तेरी नम हो

तो राह का पत्थर भी

पिघल ही जायेगा

यह रंगों का मौसम

रंगों सा छल ही जायेगा

*

चाहे दिनकर का नक्षत्रों पर राज हो

सृष्टि का सरताज हो

जीवन का आगाज हो

दिनकर दिन में प्रखर हो

पर संध्या को ढल ही जायेगा

यह रंगों का मौसम

रंगों सा छल ही जायेगा

*

किसलिए यह अहंकार हो

द्वेष और तकरार हो

नफ़रत का बाजार हो

यह संकीर्णता का दौर

सब कुछ निगल ही जायेगा

यह रंगों का मौसम

रंगों सा छल ही जायेगा

सहेज लें इस वक्त को बंदे

वर्ना यह पल निकल ही जायेगा /

*

© श्याम खापर्डे 

फ्लेट न – 402, मैत्री अपार्टमेंट, फेज – बी, रिसाली, दुर्ग ( छत्तीसगढ़) मो  9425592588

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – कविता ☆ – होली पर… ☆ श्री राजेन्द्र तिवारी ☆

श्री राजेन्द्र तिवारी

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी जबलपुर से श्री राजेंद्र तिवारी जी का स्वागत। इंडियन एयरफोर्स में अपनी सेवाएं देने के पश्चात मध्य प्रदेश पुलिस में विभिन्न स्थानों पर थाना प्रभारी के पद पर रहते हुए समाज कल्याण तथा देशभक्ति जनसेवा के कार्य को चरितार्थ किया। कादम्बरी साहित्य सम्मान सहित कई विशेष सम्मान एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित, आकाशवाणी और दूरदर्शन द्वारा वार्ताएं प्रसारित। हॉकी में स्पेन के विरुद्ध भारत का प्रतिनिधित्व तथा कई सम्मानित टूर्नामेंट में भाग लिया। सांस्कृतिक और साहित्यिक क्षेत्र में भी लगातार सक्रिय रहा। हम आपकी रचनाएँ समय समय पर अपने पाठकों के साथ साझा करते रहेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय कविता ‘होली पर…’।)

☆ लघुकथा – होली पर… ☆

गालों पे गुलाब है, गुलाब पे गुलाल है,

कैसे बतलाऊं, कि दिल का क्या हाल है,

मन की उमंग है कि,तन की तरंग है,

लाल लाल टेसुओं में,रंग का कमाल है,

काली काली अखियों में चाहत का रंग है,

कि चाहत के रंग से ये मन भी बेहाल है,

कैसे समझाऊं दिल,दिल पे तो वश नहीं,

सब रंग प्यारे लगें, प्यार का कमाल है.

होली के ये सारे रंग,बिन तेरे बदरंग हैं,

तेरी ही कशिश है,तेरे प्यार का गुलाल है,

राज की ये बात,कैसे, उसको बताऊं मैं,

मेरा ही तो मन है,ये, मेरा ही ख्याल है.

© श्री राजेन्द्र तिवारी  

संपर्क – 70, रामेश्वरम कॉलोनी, विजय नगर, जबलपुर

मो  9425391435

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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English Literature – Poetry ☆ Anonymous litterateur of Social Media # 181 ☆ Captain Pravin Raghuvanshi, NM ☆

Captain (IN) Pravin Raghuvanshi, NM

? Anonymous Litterateur of Social Media # 181 (सोशल मीडिया के गुमनाम साहित्यकार # 181) ?

Captain Pravin Raghuvanshi NM—an ex Naval Officer, possesses a multifaceted personality. He served as a Senior Advisor in prestigious Supercomputer organisation C-DAC, Pune. An alumnus of IIM Ahmedabad was involved in various Artificial and High-Performance Computing projects of national and international repute. He has got a long experience in the field of ‘Natural Language Processing’, especially, in the domain of Machine Translation. He has taken the mantle of translating the timeless beauties of Indian literature upon himself so that it reaches across the globe. He has also undertaken translation work for Shri Narendra Modi, the Hon’ble Prime Minister of India, which was highly appreciated by him. He is also a member of ‘Bombay Film Writer Association’. He is also the English Editor for the web magazine www.e-abhivyakti.com.  

Captain Raghuvanshi is also a littérateur par excellence. He is a prolific writer, poet and ‘Shayar’ himself and participates in literature fests and ‘Mushayaras’. He keeps participating in various language & literature fests, symposiums and workshops etc.

Recently, he played an active role in the ‘International Hindi Conference’ at New Delhi. He presided over the “Session Focused on Language and Translation” and also presented a research paper. The conference was organized by Delhi University in collaboration with New York University and Columbia University.

हिंदी साहित्य – आलेख ☆ अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ☆ कैप्टन प्रवीण रघुवंशी, एन एम्

In his Naval career, he was qualified to command all types of warships. He is also an aviator and a Sea Diver; and recipient of various awards including ‘Nao Sena Medal’ by the President of India, Prime Minister Awards and C-in-C Commendation. He has won many national and international awards.

He is also an IIM Ahmedabad alumnus.

His latest quest involves writing various books and translation work including over 100 Bollywood songs for various international forums as a mission for the enjoyment of the global viewers. Published various books and over 3000 poems, stories, blogs and other literary work at national and international level. Felicitated by numerous literary bodies..!

? English translation of Urdu poetry couplets of Anonymous litterateur of Social Media # 181 ?

☆☆☆☆☆

इस सफ़र में

नींद ऐसी खो गई

हम न सोए

रात थक कर सो गई …

☆☆

In this sojourn of life…

Lost sleep like this

Never could I sleep

Tired night only slept off…

☆☆☆☆☆

हर रोज़ ख़ुद पे ही बहुत…

हैरान बहुत होता हूँ मैं

कोई तो है मुझ में  जो…

बिल्कुल ही जुदा है मुझ से…!

☆☆

Everyday  I  keep  getting

too  surprised  on  myself…

There’s someone in me who’s

completely different from me…

☆☆☆☆☆

सारी उम्र गुजर गयी……

खुशियाँ बटोरते बटोरते

बाद में पता चला कि

खुश तो वो लोग थे

जो खुशियाँ बाट रहे थे…

☆☆

Whole life passed away in

Picking up  the  happiness…

Only to find happy were those

Who kept sharing happiness..!

☆☆☆☆☆

कौन कहता है कि

दिल सिर्फ सीने में होता है…

तुमको लिखूँ तो

मेरी उँगलियाँ भी धड़कती हैं…

☆☆

Who says that

Heart is in chest only

My fingers also throb

When I write to you…!

☆☆☆☆☆

© Captain Pravin Raghuvanshi, NM

Pune

≈ Editor – Shri Hemant Bawankar/Editor (English) – Captain Pravin Raghuvanshi, NM ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ सलिल प्रवाह # 180 ☆ नवगीत: गीत पुराने छायावादी ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है नवगीत: गीत पुराने छायावादी )

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 180 ☆

☆ नवगीत: गीत पुराने छायावादी ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

गीत पुराने छायावादी

मरे नहीं

अब भी जीवित हैं.

तब अमूर्त

अब मूर्त हुई हैं

संकल्पना अल्पनाओं की

कोमल-रेशम सी रचना की

छुअन अनसजी वनिताओं सी

गेहूँ, आटा, रोटी है परिवर्तन यात्रा

लेकिन सच भी

संभावनाऐं शेष जीवन की

चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.

बिम्ब-प्रतीक

वसन बदले हैं

अलंकार भी बदल गए हैं.

लय, रस, भाव अभी भी जीवित

रचनाएँ हैं कविताओं सी

लज्जा, हया, शर्म की मात्रा

घटी भले ही

संभावनाऐं प्रणय-मिलन की

चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.

कहे कुंडली

गृह नौ के नौ

किन्तु दशाएँ वही नहीं हैं

इस पर उसकी दृष्टि जब पडी

मुदित मग्न कामना अनछुई

कौन कहे है कितनी पात्रा

याकि अपात्रा?

मर्यादाएँ शेष जीवन की

चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

२८.११.२०१५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: [email protected]

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश #230 – 117 – “ एक दिन तेरा तो पक्का ठहरा है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ☆

श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण ग़ज़ल एक दिन तेरा तो पक्का ठहरा है…” ।)

? ग़ज़ल # 114 – “एक दिन तेरा तो पक्का ठहरा है…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

मौत आती है मगर नहीं आती,

ठीक से क्यूँ एक बार नहीं आती।

*

खैर मनाती  ज़िंदगी तब तक,

आहट तेरी जब तक नहीं आती।

*

दिल से दिल लगाती है बेवफ़ा,

सिर पर चढ़ क्यों नहीं आती।

*

झलक दिखा कर छुप जाती है,

रास्ता देखे महबूब नहीं आती।

*

दिन किसी तरह कट जाता है,

नीद मगर रात भर नहीं आती।

*

हो रहे सभी परेशान घर बाहर,

मुसीबत एक बारगी नहीं आती।

*

एक दिन तेरा तो पक्का ठहरा है,

काश तड़पा-तड़पा के नहीं आती।

*

आ जाए अगर एक बार ठीक से,

आतिश को फिर याद नहीं आती।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – नि:शब्द ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – नि:शब्द ? ?

(काव्य-संग्रह ‘ वह’ से)

एक तुम हो

जो अपने प्रति

नि:शब्द रही जीवन भर,

एक मैं हूँ

जो तुम्हारे प्रति

नि:शब्द रहा जीवन भर..!

© संजय भारद्वाज  

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ महाशिवरात्रि साधना पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। अगली साधना की जानकारी से शीघ्र ही आपको अवगत कराया जाएगा। 🕉️💥

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ “श्री हंस” साहित्य # 108 ☆ मुक्तक – ।। दिल जीते जाते हैं दिल में उतर जाने से ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

श्री एस के कपूर “श्री हंस”

☆ “श्री हंस” साहित्य # 108 ☆

☆ मुक्तक – ।। दिल जीते जाते हैं दिल में उतर जाने से ।। ☆ श्री एस के कपूर “श्री हंस” ☆

[1]

हर पल नया साज  नई   आवाज है जिंदगी।

कभी खुशी कभी  गम बेहिसाब है जिंदगी।।

अपने हाथों अपनी किस्मत का देती है मौका।

हर रंग समेटे नया करने का जवाब है जिंदगी।।

[2]

जीतने हारने की  ये हर   हिसाब रखती है।

यह जिंदगी हर अरमान हर ख्वाब रखती है।।

हार के बाजी पलटने की ताकत जिंदगी में।

जिंदगी बड़ीअनमोल हर ढंग नायाब रखती है।।

[3]

समस्या गर जीवन में तो समाधान भी बना है।

हर कठनाई से पार पाने का निदान भी बना है।।

देकर संघर्ष भी हमें यह है संवारती निखारती।

जीतने को ऊपर ऊंचा  आसमान भी बना है।।

[4]

तेरे मीठे बोल जीत सकते हैं दुनिया जहान को।

अपने कर्म विचार से पहुंच सकते हैं आसमान को।।

अपने स्वाभिमान की  सदा ही रक्षा तुम करना।

मत करो और  नहीं  गले लगायो अपमान को।।

[5]

युद्ध तो जीते जाते हैं ताकत  बम हथियारों से।

पर दिल नहीं जीते जाते कभी भी तलवारों से।।

उतरना पड़ता दिल के अंदर अहसास बन कर।

यही बात  समा जाए    सबके ही किरदारों में।।

© एस के कपूर “श्री हंस”

बरेलीईमेल – Skkapoor5067@ gmail.com, मोब  – 9897071046, 8218685464

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ काव्य धारा # 170 ☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “ईश्वर सबको शुभ-कामों में देता निश्चित साथ है…” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ ☆

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित एक भावप्रवण रचना  – “ईश्वर सबको शुभ-कामों में देता निश्चित साथ है..। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे।) 

☆ ‘चारुचन्द्रिका’ से – कविता – “ ईश्वर सबको शुभ-कामों में देता निश्चित साथ है” ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

धरती देती अन्न और फल, जल देता आकाश है

इससे जग का रक्षक ईश्वर है, ऐसा विश्वास है।

लेकिन कुछ पाने को सबको करना पड़ता काम है

सदा परिश्रम ही जीवन में देता हर आराम है।

 *

क्या पाने को क्या करना है, यदि इसका नित ध्यान हो

और सही पथ पर चलने का यदि मनुष्य को ज्ञान हो

 *

तो न काम कठिन है कोई, सब संभव संसार में

नयी योग्यता मिलती अनुभव से हर जीत या हार में।

 *

ईश्वर सबको शुभ कार्यों में देता निश्चित साथ है

उसे ज्ञात है भले-बुरे में किसका कितना हाथ है।

 *

सदाचार, सच्चाई, श्रम का इससे शुभ है रास्ता

तीन पाँच से कभी न रखना, बच्चों ! कोई वास्ता ॥

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – ज़रा सोचो ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)

? संजय दृष्टि – ज़रा सोचो ? ?

सोचने लगा तो

यों ही सोचा;

चाहे तो जला देना

मेरे साथ

मेरे पसंदीदा कुर्ता, पायजामा,

जींस, हाफ कुर्ता, मेरा चश्मा

और…..

पसंदीदा की शायद

इससे लंबी फेहरिस्त नहीं है मेरी,

ख़ैर जो-जो तुम चाहो

कर देना आग के हवाले;

पर सुनो,

हाथ मत लगाना

मेरे प्रसूत शब्दों को..,

फिर आगे सोचा तो

यों सोचा;

आखिर क्यों मानोगे

तुम मेरी बात?

तो चलो

जला भी दिये मेरे शब्द,

तो बताओ;

कागज़ ही जलेगा न!

तुम्हारे ज़ेहन में तो

चाहे-अनचाहे

बसे ही रहेंगे मेरे शब्द,

भला उनको

कैसे जलाओगे..?

फिर आगे सोचा तो

यों ही सोचा;

मान लो

ब्रेन वॉश का

कोई तरीका

सिखा दिया जाए तुम्हें

जैसे आतंकियों को

सिखाया जाता है,

फिर तुम्हारे ज़ेहन में

नहीं बसे रहेंगे मेरे शब्द,

पर फिर भी

नष्ट नहीं होंगे मेरे शब्द..!

चलो तुम्हारी झुंझलाहट

सुलझा दूँ

इस पहेली का

हल बता दूँ,

अब मैंने जो सोचा तो

यह सोचा;

जो मैंने लिखा

वह पहला नहीं था

और सच यह है कि

वह आख़िरी भी नहीं होगा,

मेरे पहले

हज़ारों-लाखों ने

यही सोचा-लिखा होगा,

मेरे बाद भी

हज़ारों-लाखों

यही सोचेंगे, लिखेंगे,

सो मेरे मित्रो!

मेरे शत्रुओ!

मिट जाता है शरीर;

मिट जाते हैं कपड़े;

जूते, चश्मा,

परफ्यूम, बेंत आदि-आदि

पर अमरपट्टा लिए

बैठे रहते हैं शब्द;

जच्चा वॉर्ड से श्मशान तक,

अतीत हो जाते हैं व्यक्ति,

व्यतीत नहीं होते विचार!

विश्वास न हो तो

तुम सोच कर देखो

एक बार,

सोचोगे तो

तुम भी यही लिखोगे-

सोचने लगा तो

यों ही सोचा;

फिर आगे सोचा तो

यों ही सोचा;

फिर वही सोचा

जो तुमने था सोचा,

जो उसने था सोचा,

जो वो सोचेंगे,

ज़रा सोचो;

सोचो तो सही ज़रा !

© संजय भारद्वाज  

(रात्रि 10:30, दि. 31 दिसंबर 2015)

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

💥 🕉️ महाशिवरात्रि साधना पूरा करने हेतु आप सबका अभिनंदन। अगली साधना की जानकारी से शीघ्र ही आपको अवगत कराया जाएगा। 🕉️💥

 अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ साहित्य निकुंज #225 ☆ लघुकथा – भोला मन – ☆ डॉ. भावना शुक्ल ☆

डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से  प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं आपकी एक लघुकथा – भोला मन)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 225 – साहित्य निकुंज ☆

☆ लघुकथा – भोला मन ☆ डॉ भावना शुक्ल ☆

केबिन के दरवाजे में ठक तक की आवाज आई।

तुरंत ही हमने कहा ..” कम इन ” ।

देखते ही होश उड़ गए ।सामने से खूबसूरत लड़की हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए चली आ रही थी।

आते ही बोली ” सर लीजिए इसी ऑफिस में आज ही मेरी पोस्टिंग हुई है सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर।”

हमने …” बधाई है जी कहा “।

और वह “थैंक्स कह कर चली गई।”

दिन रात रूबी के साथ काम के सिलसिले में उठना बैठना जारी रहा मेरा मन तो बस उसका दीवाना होता जा रहा था उसकी बातों में उसके शब्दों में उसके पहनने ओढ़ने में कशिश थी जिसमें मैं रमता चला जा रहा था। कई बार सोचा कि उससे बात करूं उससे कहूं, लेकिन हिम्मत ही नहीं हुई एक दिन पता चला कि वह नौकरी छोड़ कर जा रही है।

उसको शहर से बाहर कहीं और अच्छी कंपनी में नौकरी मिल गई है तब मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसके जाने से पहले उसको कह ही दिया……..” रूबी जबसे तुमको देखा है तब से मैं तुम्हारा दीवाना हो गया हूं मैं तुम्हें प्यार करता हूं तुम्हारे साथ अपनी जिंदगी गुजारना चाहता हूं।”

तब रूबी का जवाब था… “आप सभी पुरुष वर्ग का मन बड़ा भोला होता है हंसी मजाक मित्रता को आप प्यार समझ लेते हैं और उसी पर अपना जीवन बर्बाद करने के लिए उतारू हो जाते हैं मैंने इस संदर्भ में कभी नहीं सोचा और न ही मैं सोचना चाहती हूं।”

© डॉ भावना शुक्ल

सहसंपादक… प्राची

प्रतीक लॉरेल, J-1504, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब. 9278720311 ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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