हिन्दी साहित्य – कविता – ☆ तुम पत्थर भी बन जाती हो..!! ☆ – सौ. सुजाता काळे

सौ. सुजाता काळे

☆ तुम पत्थर भी बन जाती हो..!! ☆
(प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी  की  नारी पर एक भावप्रवण कविता । ) 

 

नारी तुम चलो तो,
नदिया सी बहती हो।
सब कुछ समेटे हुए,
आँचल में छिपाती हो।
मिट्टी, काँटे, कंकड़
पत्थर को तोड़ती हो।
अपनी गर्भ में अमूल्य
मोतियों को पालती हो।

नारी तुम रुकी तो,
पहाड़ सी बन जाती हो।
आँधी, तूफान या हो
ज्वालामुखी सहती हो।
अनगिनत बहते झरने
आँखों में बसाती हो।
भूस्सखन हो चाहे कितने
जड़ बन जाती हो।

हे नारी…!!
तुम मोम बन जाती हो,
और कभी मोम से
पत्थर भी बन जाती हो..!!

© सुजाता काळे
पंचगनी, महाराष्ट्रा।
9975577684

 

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हिन्दी साहित्य- कथा-कहानी – वैज्ञानिक लघुकथा – ☆ दी एस्ट्रो वेइल ☆ – श्री सूरज कुमार सिंह 

श्री सूरज कुमार सिंह 

☆ दी एस्ट्रो वेइल ☆

(ई-अभिव्यक्ति में  मानवता के लिए एक सार्थक संदेश की कल्पना के साथ यह पहली अन्तरिक्ष विज्ञान पर आधारित  लघुकथा  है जो  युवा साहित्यकार श्री सूरज कुमार सिंह द्वारा लिखी गई है । यह लघुकथा  हमें पर्यावरण के अतिरिक्त मानव जीवन के कई पहलुओं पर प्रकाश डालती है। हिन्दी साहित्य में ऐसे  सकारात्मक प्रयोगों  की आवश्यकता है ।  ) 

त्रयाक के नियंत्रण कक्ष तथा कमान  कक्ष मे काफ़ी चहल-पहल थी।  और होती  भी क्यों न? त्राको वासियों का यह दल सिग्नस-अ आकाशगंगा से छह सौ करोड़ प्रकाश वर्ष  की दूरी तय  कर मिल्कीवे आकाशगंगा पहुँच चुके थे और उनका यान त्रयाक सौर मंडल के छोर पर आकर रुक चूका था l अब त्रयाक के कर्मी सबसे महत्वपूर्ण कार्य की तैयारी में जुट  गए।  पृथ्वी पर एक चालक रहित यान भेज कर यह सुनिश्चित करना की पृथ्वी की सतह तथा जीव दोनों अनुकूल हैं या नही।  हालाँकि पिछले कई

Satellite, Moon, Earth, Planet, Universeवर्षो से जिस पृथ्वी से त्राको वासियों को  लगातार रेडियो सिग्नल मिल रहे थे उस गृह के जीवों से वे एक दोस्ताना रवैये की  ही उम्मीद कर रहे थे परन्तु प्रोटोकॉल तो प्रोटोकॉल था।  न चाहते हुए भी टोह लेना आवश्यक था।  तो परिणामस्वरूप चालक रहित यानों को त्रयाक से उतारा गया और पृथ्वी की ओर रवाना किया गया।  इन यानों से मिलने वाले डाटा को रिसीव कर उनकी समीक्षा और एनालिसिस करने को त्रयाक का हर कर्मी उत्साहित था।  वे तो सोच रहे  थे की कब इन यानों से जानकारियां आना शुरू हो जाए और कब मानव तथा अन्य प्रजातियों से सीधा संपर्क करने को हम पृथ्वी पर उतरें।  यानों ने पृथ्वी की कक्षा को इंटरसेप्ट किया और फिर वायुमंडल मे दाखिल होने लगे।  त्राको वासियों की बेसब्री बढ़ते ही जा रही थी।  पृथ्वी पर मानव के आलावा भी कई प्रजातियां हैं वे पहले से जानते थे और यह भी मान चुके थे की मानव एक इंटेलीजेंट प्रजाति है।   अन्यथा इतने स्पष्ट रेडियो सिग्नल इतने दूर अंतरिक्ष मे कैसे भेज पाते? बस अब देरी थी तो उनको और बेहतर ढंग से समझने की और उनसे सीधा संपर्क बनाने की।

पांचो टोही यानों से डाटा आने शुरू हो गए।  अभी पृथ्वी के समय के हिसाब से कुछ मिनट हुए ही होंगे की पांच मे से एक यान ने अपने ओर तेज़ गति से आ रहे कुछ हथियारों को इंटरसेप्ट किया।  उस यान ने आसानी से खुद को उन हाथियों की पथ में आने से बचा तो लिया परन्तु हमले जारी रहे।  यान ने इनके सोर्स का पता लगाया और उनकी पहुँच से दूर चला गया।  दरअसल वे अमरीकी मिसाइलें थीं।  जो पैसिफ़िक के उन अमरीकी द्वीपों पर तैनात थीं जिनके ऊपर से वो यान गुज़र रहा था।  शायद उन्होंने त्राको अंतरिक्ष यान को कोई दक्षिण-कोरियाई मिसाइल समझ लिया था।  अब त्रयाक पर मौजूद नियंत्रण कर्मी और उनके लीडरों का महकमा सकते मे आ गया था! इस किस्म के व्यवहार की किसी  ने  भी  उम्मीद नही की  थी।  किसी ने भी नही सोचा था की पृथ्वी वासी हथियारों से स्वागत करेंगे।  पर फिर  भी टोही मिशन को जारी रखने की अनुमति वैज्ञानिक दल की सलाह के बाद कमांडर ने थोड़ी हिचकिचाहट के बाद दे दी।  खैर टोही यानों ने अपना काम जारी रखा और डाटा त्रयाक तक  पहुंचाते रहे।  इस कार्य की पूर्ति के बाद पांचो टोही यान वापस बुला लिए गए।  काफी ज़्यादा डाटा एकत्रित हो  चूका था।  इसे  पूरी  तरह एनालाइज़ करने मे थोड़ा वक़्त लगा।  परन्तु फिर भी परिणाम काफी जल्दी मिल गए।  परिणाम काफी चौंकाने वाले साबित हुए! इसकी रिपोर्ट बना कर कमांडर को तथा अन्य लीडरों को सौंप दी गयी।  इस रिपोर्ट के अंत मे जो  लिखा  हुआ  था वह सबके  लिए एक बड़ा झटका था।  लिखा हुआ था – मानवों मे  से ज़्यादातर मानसिक रूप  से विकृत है जो उन्हे हिंसावादी और तबाही-पसंद बनाता है।  यह एक  ऐसी प्रजाति के जीव हैं जो सिर्फ एक दूसरे को ही नही अपितु अन्य प्रजातियों  को  भी भरसक  हानि पहुंचाते हैं।  इनमे इंटेलीजेंट और शांतिप्रिय जन बहुत ही कम  हैं।  और जितने  हैं उन्हे इन का समाज ईशनिंदा करने वाला बताकर धिक्कारता है।  इनका समाज वैज्ञानिको की निंदा और धोखाधड़ों को पूजता है।  इसलिए वे मेल-जोल के लायक नही हैं।  इनसे किसी तरह का संपर्क हमे इनसे तालुकात रखने पर मजबूर कर देगा जो हमारे  लिए घातक सिद्ध हो सकता है।  कल को यह  हमारी ही तकनीक  का प्रयोग  कर  हम तक हथियारों के साथ  पहुंच  जाएँ तो यह  हमारा  क्या करेंगे कहना बड़ा  मुश्किल है।  इसलिए इनके समक्ष अपनी उपस्थिति उजागर करना मूर्खता है।  जब रिपोर्ट मे इस गंभीर मानसिक विकृति तथा अधिक  वक़्त  मे  कम तकनिकी तरक़्क़ी के मुख्य कारणों पर नज़र डाली  गयी  तो और भी रोचक  बात सामने आयी! बताया गया की जब भी मानव जाति विज्ञान और तकनीक में तरक़्क़ी करने लगती है  और मानव जाति का विकास होने लगता है, उसी वक़्त असामाजिक ताक़तें खुद सशक्त होने के लिए पूरी मानव जाति को पीछे धकेल देती है।  इसलिए मानव जाति के विकास की गति बहुत धीमी है।  साथ ही इन लोगों  ने अपनी बुनियादी सम्पदाओं के दोहन के साथ-साथ प्रकृति को भी इतना नुक्सान पंहुचा दिया है की अब इनका पर्यावरण बचाया नहीं जा सकता।

कमांडर ने  इस रिपोर्ट का संज्ञान लेते  हुए सबसे कहा- इस रिपोर्ट में मौजूद तथ्यों को ध्यान मे लेते हुए आप  सब  को शायद अब कोई शक नही होगा कि मेरा निर्णय क्या होने वाला है।  मै इस मिशन का कमांडर  होने के नाते यह फैसला लेता  हूँ की त्रयाक दल फ़िलहाल मानव जाति से कोई संपर्क स्थापित  नही करेगा और हम पृथ्वी के सूर्य से त्रयाक के सभी इंजनों को रिचार्ज कर वापस अपनी आकाशगंगा की ओर चलेंगे।  इस पर एक  त्रको लीडर  ने एतराज़ जताया।  उनका कहना था कि सौर  मंडल के  सूर्य से  इंजन  रिचार्ज करने का अर्थ है सूर्य का फ्यूल कम कर देना।  इससे सूर्य की उम्र कई गुना घट जाएगी।  इसका सीधा असर भविष्य  मे मानव तथा पृथ्वी की अन्य प्रजातियों पर पड़ेगा।  तो  क्या  ऐसा करना उचित होगा।  इस पर कमांडर ने उन्हें दिलासा दिया और कहा- मित्र मै आपकी  चिंता  समझता हूँ पर  क्या  आपको लगता  है कि मानव जाति के पास इतना समय है भी।

© श्री सूरज कुमार सिंह, रांची 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता/गजल – ☆ आजवर ☆ – सुश्री प्रभा सोनवणे

सुश्री प्रभा सोनवणे

 

? आजवर ?

 

(सुश्री प्रभा सोनवणे जी  हमारी  पीढ़ी की एक वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं ।  प्रस्तुत है e-abhivyakti के विशेष अनुरोध पर लिखी सुश्री प्रभा जी की एक बेहतरीन मराठी गजल।)

 

मोरपंखी स्वप्न माझे फक्त विरले आजवर

हेच माझ्या जीवनाचे सार ठरले आजवर

 

ना तुला जाणीव झाली सोसले मी काय ते

कोण जाणे येथ कैसे दिवस सरले आजवर

 

दोष ना देते तुला वा दोष नाही प्राक्तना

जे मिळाले त्यात आहे  मी बहरले आजवर

 

मी फुलाना काय सांगू जखम करता मज तुम्ही

वार त्यांचे काळजावर घेत फिरले आजवर

 

जे नको होते मुळी ते ही करावे लागले

तू मला प्रत्येक वेळी गृहित धरले आजवर

 

कोवळे वय येत नाही फिरुन माघारी कधी

मी कुठे आई तुझे ते बोट स्मरले आजवर

 

लोक किल्ले बांधती वाळूत, बांधो बापडे

सागरा मध्ये स्वतःच्या मस्त तरले आजवर

 

© प्रभा सोनवणे,  

“सोनवणे हाऊस”, ३४८ सोमवार पेठ, पुणे – ४११०११

मोबाईल-9270729503

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ Giggling Penguins From Indonesia ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

Giggling Penguins From Indonesia

The sparkling laughter of three young Indonesian friends is still ringing in my ears.

Lisa, Ardian and Danang work for Nestle Indonesia and have come on official duty to the Nestle India factory at Samalkha, Haryana. Incidentally I happened to be there for conducting laughter yoga sessions for the staff of Nestle. In the evening, we travelled together to Nirula’s Hotel in Panipat where we were staying.

On the way, we talked about Laughter Yoga. They were curious and found the concept interesting. I invited them to my room later in the evening for a brief tryst with laughter yoga.

We had one of the most enjoyable laughter sessions in the hotel room that evening. They were rolling in their chairs!

They were fascinated by milk shake laughter, sumo wrestler laughter and forgiveness laughter. But they loved penguin laughter the most. For some time giggling penguins were moving all over the room. It was sheer joy!

It is said that the more the merrier. But sometimes less is more. We went on to discuss the physiological and psychological benefits of laughter and also the inner spirit of laughter.

We then enjoyed our dinner together.

I am going to cherish those lovely moments for a long time.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
[email protected]

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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (69) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी ।

यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः ।।69।।

सदा संयमी जागते जब दुनियाँ की रात

जब जगता संसार यह मुनि का नहीं प्रभात।।69।।

भावार्थ :   सम्पूर्ण प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानन्द की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है और जिस नाशवान सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं, परमात्मा के तत्व को जानने वाले मुनि के लिए वह रात्रि के समान है।।69।।

 

That which is night to all beings, then the self-controlled man is awake; when all beings are awake, that is night for the sage who sees ।।69।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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हिन्दी साहित्य – कविता -☆ मोलकी ☆ – डॉ. मुक्ता

डॉ.  मुक्ता

☆ मोलकी ☆

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। डॉ मुक्ता जी के ये शब्द  “अनजान बालिका, दुल्हन नहीं ’मोलकी’ ” कहलाती है। निःशब्द हूँ । बेहतर है आप स्वयं यह कविता पढ़ कर टिप्पणी दें।) 

 

औरत का वजूद ना कभी था

ना होगा कभी

उसे समझा जाता है कठपुतली

मात्र उपयोगी वस्तु

उपभोग का उपादान

जिस पर पति का एकाधिकार

मनचाहा उपयोग करने के पश्चात्

वह फेंक सकता है बीच राह

और घर से बेदखल कर

उस मासूम की

अस्मत का सौदा

किसी भी पल अकारण

नि:संकोच कर सकता है

 

आजकल

भ्रूण-हत्या के प्रचलन

और घटते लिंगानुपात के कारण

लड़कियों की खरीदारी का

सिलसिला बेखौफ़ जारी है

 

चंद सिक्कों में

खरीद कर लायी गयी

रिश्तों के व्याकरण से

अनजान बालिका

दुल्हन नहीं ’मोलकी’ कहलाती

और वह उसकी जीवन-संगिनी नहीं

सबकी सम्पत्ति समझी जाती

जिसे बंधुआ-मज़दूर समझ

किया जाता

गुलामों से भी

बदतर व्यवहार

 

भूमंडलीकरण के दौर में

‘यूज़ एंड थ्रो’

और‘तू नहीं और सही’

का प्रचलन सदियों से

बदस्तूर जारी है

और यह है रईसज़ादों का शौक

जिसमें ‘लिव-इन’ व ‘मी-टू’ ने सेंध लगा

लील लीं परिवार की

अनन्त,असीम खुशियां

और पर-स्त्री संबंधों की आज़ादी

कलंक है भारतीय संस्कृति पर

जाने कब होगा इन बुराईयों का

समाज से अंत ‘औ’ उन्मूलन

शायद! यह लाइलाज हैं

नहीं कोई इनका समाधान

 

© डा. मुक्ता

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

 

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हिन्दी साहित्य- कविता – ☆ क्या तुम समझते हो? ☆ – सुश्री मीनाक्षी भालेराव

सुश्री मीनाक्षी भालेराव 

☆ क्या तुम समझते हो? ☆

(कवयित्री सुश्री मीनाक्षी भालेराव जी  का स्त्री पर  एक  हृदयस्पर्शी एवं भावप्रवण  कविता।) 

 

क्या तुम समझते हो

स्त्री होने का दुःख ?

नहीं तुम नहीं समझ सकते

तुम्हें अपने पुरूष होंने

का बहुत अभिमान है।

सदियों दर सदियों तक

तुम नहीं बदलोगे ।

क्या तुम एक दिन के लिए

केवल एक दिन के लिए

स्त्री बनना चाहोगे ?

देखना चाहोगे

महिने के वो सात दिन

किस पीड़ा से गुजरती है ?

जीना चाहोगे संस्कारों के नाम पर

शोषित होकर

क्या तुम एक संतान को जन्म देकर

नौ महीने का अनुभव करना चाहोगे?

क्या एक दिन तुम चारदिवारी में

बंद रहकर सब की

देखभाल करना चाहोगे

सबकी इच्छाओ की पूर्ति के लिए

अपनी इच्छाओं को रौंध पाओगे?

 

स्त्री होने के लिए

अहिल्या सा पत्थर होना पड़ता है

मोक्ष के नाम पर ठोकरों में रहना पड़ता है

द्रौपदी सा चीरहरण सहना पड़ता है

गली गली दुर्योधन भटकते हैं

जो औरत को भोग समझते हैं

झेलना पड़ता है गांधारी सा अंधापन।

 

सास -ससुर, पति की महत्वाकांक्षों के कारण

अपना ममत्व गिराना पड़ता है

सिर्फ और सिर्फ पुरूष संतान को जीवित रखने के लिए

कितनी बच्चियों को कुर्बान होना पड़ता है

जिन्हें पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है

फिर भी उजड़ी कोख लिए जीना पड़ता है

कितनी अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है

सिया सा आत्मा के जंगलों में भटकना पड़ता है

क्या तुमने दी है कभी अग्नि परीक्षा

सावित्री सा तपस्वी होना पड़ता है

मृत्यु तक को हारना पड़ता है

क्या कभी तुम अपनी सहचरी के लिए

लड़े हो मौत से नहीं तुम तो अपने अहंकार

क्षणिक भूख के लिए स्त्री का शरीर ही नहीं

आत्मा तक  छिन्न-भिन्न कर देते हो

फेंक देते हो मरने के लिए उसका जिस्म तार-तार कर के

और अपने होने पर गर्व करते हो

क्या है तुम्हारे पास गर्व करने जैसा कुछ है?

 

जब भी इस बात से भ्रमित हो कि तुम

संसार की सबसे श्रेष्ठ कृति हो

तो जाकर अपनी माँ से लिपट जाना

जब तुम्हें लगे कि माँ की गोद से बढ़कर कोई जगह

या सुखद अहसास दुसरा नहीं है

तो स्त्री का महत्व जीवन में ही नहीं

संसार में क्या होता है समझ लोगे

तब तुम सही मायने में

पुरूष कहलाओगे ।

 

 

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मराठी साहित्य – मराठी कविता – ? पेच आहे ? –श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे

? पेच आहे ?

(प्रस्तुत है श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी की  एक भावप्रवण कविता ।  )

 

का तडकली काच येथे ?

आरशाला जाच येथे

 

भास्करा तू दूर तेथे

जाळते मज आच येथे

 

सांग मी बोलू कशाला

मौन माझे वाच येथे

 

चाकरी देवा तुझी ही

का स्विकारू लाच येथे ?

 

चार बोटे स्वर्ग उरला

का रडावी टाच येथे ?

 

स्वर्गलोकी पुण्य न्या हो

पाप फेडा ह्याच येथे

 

मोह माया सोडवेना

पेच आहे हाच येथे

 

© अशोक भांबुरेधनकवडी

धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.

मो. ८१८००४२५०६, ९८२२८८२०२८

[email protected]

 

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योग-साधना LifeSkills/जीवन कौशल ☆ India’s New GDP: Grossly Depressed People (GDP) ☆ Shri Jagat Singh Bisht

Shri Jagat Singh Bisht

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator and Speaker.)

India’s New GDP: Grossly Depressed People

‘India’s New GDP: Grossly Depressed People’ – this headline screamed on the front page of a leading financial newspaper recently. Thousands of corporate executives have become victims of stress triggered by an economic slowdown that has been raging for a year now. Concerns about the looming threats of layoffs, salaries that are either cut or delayed and pressure to meet higher targets are conspiring to create a tempest of uncertainty that executives are finding it difficult to cope with. According to estimates by PPC Worldwide, a global provider of employee assistance programmes (EAP), more than 62% of health concerns in India Inc in the year to October 2012 were due to work stress.

Stress is the number one killer today. Most illnesses are stress related. When under a state of stress, the biochemical changes alter the breathing pattern making it shallow and irregular. According to Dr Madan Kataria, the illness arising out of stress include cardiovascular problems such as high blood pressure, heart disease and heart attacks; arthritis, asthma and other allergic conditions, diabetes, cancer, chronic fatigue, anxiety attacks, mood swings, psychological distress, depression, sleep problems, eating disorders, peptic ulcers, poor immune function, chronic pain, attention deficit hyperactivity disorder (ADHD), cold, flu, headaches and migraines, alcoholism and drug abuse and more.

Dr Kataria believes that stress in the workplace can be divided into three types. Physical stress results from working beyond one’s physical capacity. Working continuously without sufficient rest or recharge makes one physically tired and exhausted. Mental stress stems largely from heavy workloads and tight deadlines, fear of loosing one’s job or pushing too hard to fulfill basic needs. Competing with others or yourself to improve performance also leads to mental stress. Emotional stress is deep rooted and more difficult to cope up with than physical and mental stress. One needs to deal with emotional stress by increasing one’s ability to release pent-up emotions and developing skills to express emotions freely without fear.

Laughter Yoga is an instant stress buster. It has been scientifically proven that laughter reduces the level of stress hormones like cortisol and epinephrine and enhances positive emotions. A study on a group of IT professionals in Bangalore showed that the cortisol levels dropped significantly after laughter yoga sessions. The study also showed a significant drop in blood pressure following the laughter sessions.

Laughter Yoga helps to develop emotional expression through physical playfulness and a playful mental attitude. While playing you focus entirely on the play process and one’s personality takes a back seat. One is creative, dynamic and playful. Most people spend a lot of time and energy holding on to their masks and personalities. Physical playfulness helps to shed these masks and enables free expression of emotions without fear. Suppressed emotions cause ongoing physical and mental pain and reduce physical and mental performance. Laughter Yoga provides a simple, painless and effective release mechanism to help rid the subconscious mind of pent-up emotions through catharsis during intense laughter. Such release helps to build performance and improve one’s emotional intelligence and communication skills.

Business people are very busy and have no time to exercise. Dr William Fry of Stanford University proved that 10 minutes of hearty laughter is equal to 30 minutes on the rowing machine in terms of cardio pulmonary endurance. Laughter Yoga is the latest health craze sweeping the world where anyone can laugh without any reason. Any one can do it; it is scientifically proven; easy to learn and lot of fun.

Jagat Singh Bisht

Founder: LifeSkills

Seminars, Workshops & Retreats on Happiness, Laughter Yoga & Positive Psychology.
Speak to us on +91 73899 38255
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आध्यात्म/Spiritual – श्रीमद् भगवत गीता – पद्यानुवाद – द्वितीय अध्याय (68) प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

 

तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः ।

इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥

 

अतः पार्थ ! मन जिनका भी सदा विषय से दूर

उनकी स्थिर बुद्धि नित देती सुख भरपूर।।68।।

 

भावार्थ :   इसलिए हे महाबाहो! जिस पुरुष की इन्द्रियाँ इन्द्रियों के विषयों में सब प्रकार निग्रह की हुई हैं, उसी की बुद्धि स्थिर है॥68॥

 

Therefore, O  mighty-armed  Arjuna,  his  knowledge  is  steady  whose  senses  are completely restrained from sense-objects!

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

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