श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  पाँचवी  कड़ी में उनकी  एक सार्थक व्यंग्य कविता “राजनीति के तीतर”। अब आप प्रत्येक सोमवार उनकी साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य #5 ☆

 

☆ व्यंग्य कविता – राजनीति के तीतर ☆

तीतर के दो आगे तीतर,

तीतर के दो पीछे तीतर,

बढ़  ना पाये तीनों तीतर ।

 

कुंठित रह गये भीतर-भीतर,

बढ ना जाये अगला तीतर,

खींच रहा है पिछला तीतर।

 

बाहर खूब दिखावा करते,

कुढ़ते रहते भीतर-भीतर,

जहां खड़े थे पहले तीतर।

 

वही खड़े हैं अब भी तीतर,

तीतर के दो आगे तीतर,

तीतर के दो पीछे तीतर।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765

 

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डॉ भावना शुक्ल

वाह बढ़िया