श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी  के साप्ताहिक स्तम्भ  “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है “पितर-पक्ष में आ गए…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।

✍ मनोज साहित्य # 101 – पितर-पक्ष में आ गए…

पितर-पक्ष में आ गए, पुरखे घर की ओर।

मुंडन होते देखते, नदी जलाशय भोर।।

व्याकुलता उनकी बढ़ी, पितर तुल्य भगवान।

पहन मुखौटा जी रहे, कलयुग के इंसान।

जल तर्पण सब कर रहे, पितृ पक्ष का शोर।

जब भूखे प्यासे रहे,  नहीं दिया कागोर।।

खिड़की से तब झाँकते, रखा न अपने साथ। 

अर्थी पर जब सो गए, पीट रहे थे माथ।।

अब परलोकी हो गए, करते इस्तुति गान।

जीवित रहते कब मिला, हमको यह सम्मान।

स्वर्ग लोक से झाँकते, स्वजनों की यह भीर।

पिंडदान करते फिरें, गया-त्रिवेणी तीर।।

छत पर अब कागा नहीं, आकर करते शोर।

श्राद्ध-पक्ष में निकलती, पर उनकी कागोर ।

गायें अब तो घरों से, सभी गईं हैं भाग।

पंछी सारे उड़ गए, दिखें न कोई काग।।

प्रेम नेह सम्मान के, छूट रहे नित छोर ।

निज स्वार्थों से दूर अब, चलो नेह की ओर।।

सुख-दुख में सब एक हों, मानवता की डोर।

संस्कृति अपनी श्रेष्ठ है, पकड़ें उसका छोर ।।

सत्य सनातन में छिपा, मानव का कल्यान।

जीव प्रकृति जन देश-हित,छिपा हुआ विज्ञान ।।

 ©  मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”

संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002

मो  94258 62550

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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