श्री संजय भारद्वाज 

 

“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से इन्हें पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की  तृतीय कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # 3 ☆

☆ मोक्ष… ☆

 

मोक्ष.., ऐसा शब्द जिसकी चाह विश्व के हर मनुष्य में इनबिल्ट है। बढ़ती आयु के साथ यह एक्टिवेट होती जाती है। स्वर्ग-सी धरती पर पंचसिद्ध मनुष्य काया मिलने की उपलब्धि को भूलकर प्रायः जीव  अलग-अलग पंथों की पोशाकों, प्रार्थना पद्धति, लोकाचार आदि में मोक्ष गमन के मार्ग तलाशने लगता है। तलाश का यह सिलसिला भटकाव उत्पन्न करता है।

एक घटना सुनाता हूँ। मोक्ष के राजमार्ग की खोज में अपने ही संभ्रम में शहर की एक सड़क पर से जा रहा था। वातावरण में किसी कुत्ते के रोने का स्वर रह-रहकर गूँज रहा था पर आसपास कुत्ता कहीं दिखाई नहीं देता था। एकाएक एक कठोर वस्तु पैरों से टकराई। पीड़ा से व्यथित मैंने देखा यह एक गेंद थी। बच्चे सड़क के उस पार क्रिकेट खेल रहे थे। गेंद मेरे पैरों से टकराकर कुछ आगे खुले पड़े एक ड्रेनेज के पास जाकर ठहर गई।

आठ-दस साल का एक बच्चा दौड़ता हुआ आया। गेंद उठाता कि कुत्ते के रोने का स्वर फिर गूँजा। उसने झाँककर देखा। कुत्ते का एक पिल्ला ड्रेनेज में पड़ा था और शायद मदद के लिए गुहार लगा रहा था। बच्चे ने गेंद निकर की जेब में ठूँसी। क्षण भर भी समय गंवाए बिना ड्रेनेज में लगभग आधा उतर गया। पिल्ले को बाहर निकाल कर ज़मीन पर रखा। भयाक्रांत पिल्ला मिट्टी छूते ही कृतज्ञता से पूँछ हिला-हिलाकर बच्चे के पैरों में लोटने लगा।

मैं बच्चे से कुछ पूछता कि एकाएक उसकी टोली में से किसी ने आवाज़ लगाई, ‘ए मोक्ष, कहाँ रुक गया? जल्दी गेंद ला।’ बच्चा दौड़ता हुआ अपनी राह चला गया।

संभ्रम छँट गया था। मोक्ष की राह मिल गई थी।

धरती के मोक्ष का सम्मान करो, आकाश का परमानंद मोक्षधाम तुम्हारा सम्मान करेगा।

©  संजय भारद्वाज , पुणे
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शशिकला सरगर

सच है ,हमारा अच्छा कर्म ही मोक्ष कि द्वार है।
गहरा तत्वज्ञान सहज शब्दों में, बहुत सुंदर सर

Sanjay Bhardwaj

धन्यवाद शशिकला जी। आपका कमेंट देखकर अच्छा लगा।

Manjula Sharma

बहुत गहरी बात ..???

Sanjay Bhardwaj

धन्यवाद डॉ. मंजुला शर्मा।

Manjula Sharma

सरलता के साथ बहुत गहरी बात ..???

Sanjay Bhardwaj

धन्यवाद।