श्री शांतिलाल जैन 
‘आँचल : एक श्रद्धांजलि’
(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं।  आपकी पुस्तक ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। e-abhivyakti में हम आपके इस प्रथम व्यंग्य को प्रकाशित कर गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं एवं भविष्य में भी साहित्यिक सहयोग की अपेक्षा करते हैं।) 
3 जुलाई, 2048. ऑप्शनल सब्जेक्ट हिंदी, क्लास टेंथ. भावार्थ के लिए मैम ने कविता पढ़ी -“अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में दूध और आँखों में पानी”
“मैम, ये आँचल कैसा होता है ?”  अचकचा गई मैम. कैसे बताये ?
“आँचल पल्लू जैसा होता है.”
“मैम, ये पल्लू कैसा होता है ?” – एक स्टूडेंट ने पूछा.
“ओके. दुपट्टा देखा है ? या तुमारा ग्रान’मा का फोटू में कभी साड़ी, ओढ़नी, चुन्नी देखी होगी…वो भी नहीं……ओके. नो प्रॉब्लम. लुक एट मी, लाइक हम मॉडर्न इंडिया का वुमंस जींस और टॉप पहनता हैं ना. पहले का वुमन सलवार-कुर्ता-दुपट्टा पहनता था.” – मैम कविता से कपड़ों पर आ गई. पसंद का विषय. उन्होंने प्रोजेक्टर पर एक ओल्ड हेरिटेज साईट ऑन की.  “लुक हियर, ये सलवार, ये कुर्ता और उसके ऊपर ये जो दुपट्टा है ये पहनना कम्पलसरी था.”
“व्हाय मैम ?”
“हमारा कंट्री बैकवर्ड और दकियानूस होता था इसीलिए. जैसे जैसे कंट्री मॉडर्न बनता गया वैसे वैसे दुपट्टा कम्पलसरी से ऑप्शनल होता चला गया. उसकी जगह भी बदलती गई. पहले वो पूरे सीने पर था, फिर गले में लिपटा, फिर कंधे पर झूला. फिर लुप्त हो गया.”
“किसी ने उसे सेव नहीं किया ?”
“बचाने की कोशिशें पहले होती थीं.  एक बार एक हीरोईन ने कम्प्लेंट की – हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का. उड़ानेवाले की हवा टाईट करना पड़ी मगर दुपट्टा बचा लिया गया. ऑनलाइन कम्प्लेंट करने का चलन तो था नहीं, मीनाकुमारी को डांस परफॉर्म करके पुलिसवालों की कम्प्लेंट करानी पड़ी. बोला –‘सिपहिया से पूछो जिसने बजरिया में छीना दुपट्टा मेरा.’  पुलिसवाले को लाइन अटैच करके दुपट्टा वापस दिलवा दिया गया. फिर आर्थिक सुधारों के ट्रोजनहार्स में छुपकर जो हवा आई उसने लाल, पीले, हरे, मलमल के, शिफोन के, जार्जेट के हर तरह के दुपट्टे उड़ा दिये. अंकल सैम की हवा दिखती नहीं है मगर वह जिस देश में चल निकलती है भाषा,संस्कृति, संस्कार सब उड़ा ले जाती है.”
“मैम, वो पोयट आँचल, दूध, आँखें पानी – ऑल दिस क्यों लिखता था ?”
“हिन्दी का पोयट था ना. ओनली हिंदुस्तान और हिंदुस्तानी में जीता था. ऐसा हिन्दी ही नहीं उर्दू का पोयट ने भी लिखा. यू नो, हिंदी-उर्दू का पोयट लोग का कारण हमारा देश अर्ली मॉडर्न नहीं बन सका. मौलाना हसरत मौहनी ने एक बार गलती से खेंच लिया पर्दे का कोना दफ़अतन.  महबूबा का वो मुँह छुपाना  उनकी मेमोरी में स्टोर हो गया. उन्होने गुलामअली साहब को लिखकर दिया जिन्होने लाखों लोगों को ये इंसिडेंस गा गा कर सुनाया. कितना लोग का कितना टाईम वेस्ट किया. तब कंट्री डिसाईड किया आगे से नो मोर दुपट्टा नो मोर मुँह छुपाना. उर्दू का पोयट के लिए तो रुख से सरकती थी नकाब आहिस्ता अहिस्ता. जवान लोग काम-धंधा छोड़कर घंटों छज्जे आई मीन बॉलकनी के सामने सरकी नकाब की एक झलक पाने के लिए खड़े रहते थे. प्रोडक्शन में कितने मेन-अवर्स का लॉस हुआ ! जीडीपी वेरी-वेरी लेट से बढ़ा.”
(क्लास में आखिरी बेंच पर बैठे एक लड़के ने दूसरे से फुसफुसा कर कहा – अबी वो सब चक्कर ख़त्म. अवनि से पूछ लिया आती क्या खंडाला. नखरे करे तो नेहा को लेकर निकल जाने का. टेंशन लेने का नई.)
“साईलेंट प्लीज.  नो क्रास टॉक.”
“मैम वो पोयट ने आँचल क्यों बोला दुपट्टा क्यों नहीं?”
“आँचल नार्मली साड़ी के पल्लू को कहते थे.”  मैम ने वेब-पेज बदला – “सी दिस ओल्ड फैशंड लेडी. इसने जो पहन रखा है उसे साड़ी कहा जाता था. मोस्ट बेकवर्ड इंडिया में वुमंस का यही मेन ड्रेस होता था. साड़ी का ये जो पार्ट दिख रहा है ना – कंधे से सामने नीचे आता हुआ इसे ही आँचल या पल्लू कहा जाता था. पोयट इसी की चर्चा कर रहे हैं. दूध से उनका आशय माँ की ममता से है जो कि अब भी वहीँ है और बच्चे का स्नेह भी वहीँ है – बस वो आँचल गायब हो गया है.”
गायब तो हिन्दी का कवि, उसकी कविता और उसका भावार्थ भी हो गया है बट एच्छिक विषय में सब चलता है. घंटी बजी. पीरियड ख़त्म हुआ. बाहर जाते जाते मैम ने कहा –“मैं क्राफ्टवाली मैम को बोलती हूँ. वो तुमको क्लॉथ लाकर दुपट्टा बनाकर सबमिट करने का प्रोजेक्ट करवायेंगी. ए ट्रिब्यूट टू अवर कल्चर बाय दुपट्टा.”
© शांतिलाल जैन
image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

7 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
-Ritu Gupta

Nice

मालती मिश्रा

बहुत सुंदर सार्थक व्यंग्य

असीम कुमार दुबे

बेहतरीन रचना । शाँति भाई की लेखनी का जवाब नही ।

सुरेश कुशवाहा तन्मय

आधुनिकता की हवा का बहुत ही धारदार सुंदर व्यंगलेख, बधाई

महेन्द्र नाथ शर्मा

बहुत सटीक व्यंग्य। श्री शांति लाल जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

इन्द्र बहादुर श्रीवास्तव

लाजवाब व्यंग्य

Sadanand

पुरानी संस्कृति बनाम नई संस्कृति का बेहतरीन चित्रण।