कैलाश मानसरोवर यात्रा – “शिवांश से शिव तक” –  श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव एवं श्रीमति भारती श्रीवास्तव

पुस्तक समीक्षा
शिवांश से शिव तक (कैलाश मानसरोवर यात्रा वर्णन)
लेखक- श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव एवं श्रीमती भारती श्रीवास्तव
प्रकाशक- मंजुल पब्लिषिंग हाउस प्रा.लि. अंसारी रोड दरियागंज नई दिल्ली।
मूल्य – 225 रु. पृष्ठ संख्या-284, अध्याय-25, परिषिष्ट 8, चित्र 35

 

कैलाश और मानसरोवर भारत के धवल मुकुट मणि हिमालय के दो ऐसे पवित्र प्रतिष्ठित स्थल हैं जो वैदिक संस्कृति के अनुयायी भारतीय समाज के जन मानस में स्वर्गोपम मनोहर और पूज्य है। मान्यता है कि ये महादेव भगवान शंकर के आवास स्थल है। गंगाजी के उद्गम स्त्रोत स्थल है और नील क्षीर विवेक रखने वाले निर्दोष पक्षी जो राजहंस माॅ सरस्वती का प्रिय वाहन है उसका निवास स्थान है।

हर भारतीय जो वैदिक साहित्य से प्रभावित है मन में एक बार अपने जीवन काल में इनके सुखद और पुण्य दर्शन की लालसा संजोये होता है। भारत के अनेको पवित्र तीर्थस्थलों में से ये प्रमुख तीर्थ है। इसीलिये इनकी पावन यात्रा के लिये भारत शासन कुछ चुने स्वस्थ्य व्यक्तियों को यात्रा की अनुमति दे उनकी यात्रा व्यवस्था प्रतिवर्ष करता है। अनेकों व्यक्ति सारे विशाल भारत से यात्रा की अनुमति पाने आवेदन करते है। उनमें कुछ भाग्यशाली जनों को यह अवसर प्राप्त होता है।

पुस्तक लेखक श्री ओंकार श्रीवास्तव जी को सपत्नीक इस यात्रा का सौभाग्य प्राप्त हुआ और उन्होनें इस अविस्मरणीय तीर्थयात्रा का वर्णन कर अपने पाठको व जन सामान्य के लिये हितकारी जानकारी उपलब्ध करने का बडा अच्छा कार्य किया है। उन्होनें यात्रा की तैयारी, यात्रा का प्रारंभ, विभिन्न पडावों, वहाँ के दृश्यों, मार्ग के रूप और विभिन्न कठिनाईयों को वर्णित कर अपने सपरिवार प्राप्त अनुभवों का उल्लेख करके अनेकों श्रद्धालुओं को जो इस यात्रा पर जाने की इच्छा रखते हैं उनके कौतूहल व मार्गदर्षन के लिये बडी सच्चाई और निर्भीकता से सरल सुबोध भाषा में अपने हृदय की बात लिखी है। 22 दिनों की यात्रा का दैनिक वर्णन है। कैलाश मानसरोवर का दर्शन अलौकिक अद्भुत व सुखद तो है ही जो जीवन में अविस्मरणीय हैं किंतु यात्रा मे अनेको कठिनाईयां भी है। हिंदी मे एक कहावत है- बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलता। अभिप्राय है कि स्वर्ग का सुख पाने के लिये अनेकों मृत्यु को सहना आवश्यक होता है तभी स्वर्ग का सुख प्राप्त करना संभव है। पुस्तक के पढने से विभिन्न  पड़ावों पर ऊंचा नीचा भूभाग पैदल चलकर पार करना और वहाँ अचानक उत्पन्न जलवायु परिवर्तन, स्थानीय निवासियों  के व्यवहार और भारतीयों की आदतो के विपरीत नये परिवेश को बर्दाश्त कर यात्रा करना कितना कठिन होता है। इसका सजीव चित्रण मिलता है। यात्रा पर जाने वालो को पूरा उपयोगी मार्गदर्शन मिलता है। तिब्बत के मठ वहाँ के साधु सन्यासियों, बाजारों और लोक व्यवहार की झलक मिलती है। धार्मिक सामाजिक और व्यवहारिक रीति रिवाजों से पाठको को अवगत कराने वाली उपयोगी पुस्तक है। भाषा, भाव और विचारो की अभिव्यक्ति में लेखक सफल है। पाठक को पढने से स्वतः यात्रा करने की सी भावानुभूति होती है। भौगोलिक चित्र भी दिये गये है। धार्मिको की मान्यताओं के अनुरूप शिव और प्रकृति का सुरम्य दृश्य यात्री को देखने का अवसर मिलता है।

प्रतिवर्ष  एक हजार से अधिक यात्री मानसरोवर की यात्रा करते है पर उन हजारों में से श्रीवास्तव दंपत्ति बिरले यात्री है, जिन्होेंने अपनी यात्रा के अनुभवों को लोक व्यापी बनाकर इस पुस्तक के माध्यम से अद्भुत साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक विवेचना कर जनहितकारी कार्य किया है। कृति बांरबार  पठनीय है।

 

समीक्षक – प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव ‘विदग्ध‘,

A 1, एमपीईबी कालोनी, रामपुर, जबलपुर 

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