समीक्षक : सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’

 

साझा काव्य संकलन – नवरंग – संपादक : श्री पवन गहलोत 

 

गतिमान समय के हर पल के अलग ही रंग अलग ही अनुभव होते हैं, ये बदलते रंग व्यक्ति को कटु-मृदु, सरस-नीरस, हर्ष-विषाद व संयम-व्याकुलता आदि विभिन्न रंगों से परिचित कराते हैं। कलम के पुजारी इन्हीं रंगों में अपनी लेखनी डुबोकर नवीन कृतियों का सृजन कर डालते हैं। ऐसे नव-नवीन रंगों से सुसज्जित है यह साझा काव्य संकलन ‘नवरंग’। काव्य के विविध नवीन रंगों से सज्ज इस साझा संकलन का द्विअर्थी नाम ही बेहद आकर्षक है। इसमें नौ कवियों की नौ-नौ रचनाओं को बेहद खूबसूरती से संकलित किया गया है। पवन गहलोत जी के कुशल संपादन में संकलित इस पुस्तक में जीवन के खट्टे-मीठे, सरस-नीरस सभी रंग मुखरित हुए हैं। कविता लेखन साहित्य की वह विधा है, जिसमें किसी कहानी या मनोभावों को कलात्मक रूप से भाषा के द्वारा अभिव्यक्त किया जाता है। इस पुस्तक की सभी रचनाएँ कवि हृदय से निकलकर पाठक के हृदय पर  सीधे दस्तक देते हुए कवि हृदय को पाठक के हृदय से जोड़ने में सक्षम हैं।

इस संकलन में जहाँ प्रो० डॉ० सुरेश सिंहल, आशा खत्री ‘लता’, अंकुर आनंद, विजयलक्ष्मी ‘विजया’, तिलक तँवर, पवन गहलोत जैसे शब्दों के धनी, मँझे हुए कलमकारों की सामाजिक चेतना से पल्लवित रचनाएँ हैं, वहीं स्नेह विशेष, देशराज ‘देश’ और सुरेखा पिलानिया जैसे नवांकुरों की प्रतिनिधि रचनाएँ भी बीज के गर्भ को फोड़ अनंत आसमान में उड़ान भरने को व्याकुल प्रतीत होती हैं। ये सभी रचनाएँ पाठक को चिंतन के लिए विवश करती हैं। नवांकुरों के लिए किंचित यह प्रथम अवसर है जब उनकी रचनाएँ पुस्तक का आकार लेकर उनके समक्ष प्रकट हुई हैं।

राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार ‘श्री भारत भूषण सांधीवाल जी’ की शुभकामनाओं से सज्ज यह पुस्तक महज़ एक पुस्तक ही नहीं बल्कि एक आह्वान है, समाज में जागृति लाने का। इसमें संकलित प्रत्येक रचना अपने-आप में द्वंद्व लिए हुए, सवाल करती हुई परिलक्षित होती है। पवन गहलोत जी के द्वारा दिया गया प्रत्येक रचनाकार का साहित्यिक परिचय तथा कृतित्व विश्लेषण इतने विस्तृत व प्रभावशाली हैं कि पढ़कर सोचने पर विवश हो गई कि ‘इतने प्रभावशाली व बहुमूल्य शब्दों के चयन हेतु  शब्दों के सागर में कितनी गहराई तक गोते लगाए होंगे।

नवरंग में जहाँ कुछ कविताएँ भाषा शैली तथा शिल्प की दृष्टि से कलापक्ष को सुदृढ़ करती हुई छंदबद्धता के नियमों का अनुसरण करती हैं तो वहीं कई कविताएँ छंदमुक्त, अतुकांत बन भावों के अनंत आकाश में स्वच्छंद विचरण करते हुए, मन को आह्लादित तथा विचारोन्मुख करते हुए  भावपक्ष को सुदृढ़ करती हैं। कवियों को शब्दों से खेलना बखूबी आता है। यथा देशराज ‘देश’ जी कहते हैं- कुछ शब्द मिले थे राहों में, जिनको मैं चुन-चुन घर लाया/ ये शब्द भी एक सरमाया हैं, मैं इनसे झोली भर लाया।

देशराज जी की कविताएँ प्रतिष्ठित कवियों के लिए चुनौती सी प्रतीत होती हैं, आपसी प्रेम सद्भाव का संदेश देती इनकी कविताओं में गेयता और लयबद्धता मुख्य आकर्षण है। ‘बेटियाँ’ जैसी कविताओं की गेयता और बेटियों की उपलब्धियों पर गर्वानुभूति और सामाजिक चेतना का प्रतीक हैं इनकी रचनाएँ।

विजय लक्ष्मी ‘विजया’ जी की रचनाएँ आधुनिक परिवेश में मानवीय संवेदनाओं में व्याप्त उदासीनता और स्वयं को समय के हाथों सौंपते हुए हर परिस्थिति से समझौता कर अपने सपनों को मारकर जीते व्यक्ति की मनोदशा का परिचायक हैं। यथा- मैं और मेरी कल्पना/ दूर/बहुत दूर निकल आए हैं/नहीं है जहाँ/अपने चेहरे पर/बनावट का/खोल चढ़ाए मानव।

सुरेखा पिलानिया जी की अतुकांत छंदमुक्त लेखन में सभी बंधनों से आज़ादी की ओर गमन करती हुई उन्मुक्त हो खुले गगन में स्वच्छंद उड़ने की चाह मुखरित होती है।

दृष्टव्य है- मत रोको, खिल जाने दो/चाँद की चाँदनी नहीं/आफ़ताब की गर्मी हो जाने दो।

अन्यत्र लिखती हैं- मेरा यह अरमान/दे दूँ तुम्हें ऐसा जहान/जहाँ नर-नारी नहीं/खिलते-झूमते बसते हों इंसान।

इनकी रचनाओं में कहीं देश के रक्षकों (सैनिकों) के प्रति कृतज्ञता तथा देश के प्रति जागरूकता तो कहीं नारी भाव को जीवित रखते हुए नारीत्व का समर्पण और जन-जन में शिक्षा की मशाल जलाने के भाव उद्धृत हैं। कलापक्ष को छोड़ दें तो भावपक्ष बेहद सुदृढ़ तथा पाठक के हृदयतल तक पहुँच कर मन को उद्वेलित करने में सक्षम हैं।

कवि अंकुर आनंद जी की श्रृंगार रस से सराबोर रचनाएँ मन के कोमल भावों को स्फुरित करती, गेयता और लयबद्धता के समतल धरातल पर  फिसलती पाठक के हृदय में उतरती दिखाई पड़ती है।

यथा- एक कविता तुझ पर लिखकर, तेरी भेंट चढ़ाना चाहूँ।

बाहुपाश में लेकर तुमको, किस्मत पर इतराना चाहूँ।।

अन्यत्र लिखते हैं- तुम हो एक अलौकिक अनुभव, तुम दर्शन की भाषा हो।

तुम संगीत का पंचम स्वर हो, मेरी चिर अभिलाषा हो।।

श्रृंगारित कृतियों के साथ ही तिलक तंवर जी की जीवन में सदैव आगे बढ़ने को प्रेरित करती कविताएँ हमेशा हौसलों को बुलंद रखते हुए बड़े से बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने को प्रेरित करती हैं, यथा- नन्हीं तितलियों को पकड़ कर गुमान कर रहे हो,

चाँद मुट्ठी में पकड़ना सिखाएँगे तुम्हें।

कहीं लिखते हैं- फैलते तम को हटा कर, श्वास लंबी लौ बना कर,

अपने पथ से ना हटूँगा, दीप की ज्वाला बनूँगा।

मर्म की बातें कहूँगा।।

अंकुर जी के प्रेरक सृजन को आगे ले जाते पवन गहलोत जी समाज में व्याप्त विसंगतियों, विद्रूपताओं के अंधकार को देख मर्माहत होते हुए लिखते हैं- मैं अंगारा तू अंगारा/फिर भी जग में क्यों अंधियारा।

छंदों की बाध्यता को तोड़ते हुए स्वच्छंद साहित्याकाश में विचरण करती इनकी रचनाएँ शब्दों के उत्कृष्टतम संयोजन का परिचायक हैं। ये शब्दों की ही महत्ता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि- शब्दों में ही भाव छिपे हैं/शब्दों में ही घाव छिपे हैं/जिसमें द्वेष और नफरत हो/ऐसा कोई शब्दकोष न ढूँढ़ो।

इनका सृजन सजग मानवीय संवेदनाओं का प्रतीक हैं, यह प्रयास है मानव को अपने अंतस में झाँकने के लिए प्रेरित करने का ताकि पाठक पवन गहलोत जी की तरह स्वयं को मानवीयता के तराजू पर तोल सके और स्वयं से प्रश्न कर सके यथा- कौन हूँ मैं?

किश्तों में साँस लेती/हाड़ मांस की भीड़ हूँ/या अशांति के जंगल में/एक सूखा हुआ नीड़ हूँ मैं?

काव्य के कई रंगों से सज्ज ‘नवरंग’ में प्रेम, उल्लास, मानवता, देशभक्ति, आक्रोश, करुणा, रिश्तों के प्रति जागरूकता, आपसी सौहार्द्र, आत्मावलोकन, चिंतन, व्यथा आदि सभी भाव देखने को मिलते हैं।

नवरंग नौ र, कारों और पवन जी के द्वारा कल्पित एक स्वप्न है, यह साहित्य के क्षेत्र में एक साधना है और एक कदम है उन प्रतिभाओं को स्थापित करने का जो अभी सीप में बंद मोती के समान हैं। नवरंग के इस पावन लक्ष्य को मेरी शुभकामनाएँ।

‘साहित्य संचय’ प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य मात्र ₹२०० है।

आइए हम सभी नवरंग के नवीनतम रंगों में अपने साहित्यिक मन को रंग डालें।

 

समीक्षक : सुश्री मालती मिश्रा ‘मयंती’

बी-२०, गली नं०- ४, भजनपुरा, दिल्ली- ११००५३

मो. ९८९१६१६०८७

ई-मेल- [email protected]

 

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मालती मिश्रा

सुंदर संकलन, मेरी समीक्षा को स्थान देने के लिए आभार।