प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

“शरद के दोहे – कविता” ☆ प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे ☆

कविता में है चेतना,मानवता के भाव। 

कविता करती जागरण, दे जीने का ताव।। 

कविता जीवनगीत है, करुणा रखती संग। 

कविता शब्दों से बने, परहित के ले रंग।। 

कविता इक अहसास है, प्यार बढ़ाती नित्य। 

कविता उजियारा करे, बनकर के आदित्य।। 

कविता कहती पीर को, करती मंगलगान। 

कविता सच्चाई कहे, पाले नित अरमान।। 

कविता जीवन-छंद है, कविता मीठी बात। 

गीत सुहाने गा रही, बनकर मधु सौगात।। 

कविता में संवेदना, कविता में जयकार। 

कविता सामाजिकता रचे, बनकर के उपकार।। 

कविता तो आकाश है, कविता खिलता फूल। 

कविता करती दूर नित,पथ के सारे शूल।। 

कविता में गति-मति रहे, कविता में आवेग। 

कविता मानुष हित बने, हरदम नेहिल नेग।। 

कविता वन-उपवन लगे, कविता लगे वसंत। 

कविता करती द्वेष का, पल भर में तो अंत।। 

कविता उर का राग है, एक सुखद-सी आस। 

कविता में तो ईश का, होता है आभास ।। 

© प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे

प्राचार्य, शासकीय महिला स्नातक महाविद्यालय, मंडला, मप्र -481661

(मो.9425484382)

ईमेल – [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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