श्री सुरेश पटवा

 

(आदरणीय श्री सुरेश पटवा जी की साहित्यिक अध्ययन  के अतिरिक्त पर्यटन में भी विशेष अभिरुचि है। श्री सुरेश पटवा जी की यात्रा संस्मरण लेखन की अपनी अलग ही शैली है। वे किसी  पर्यटन स्थल पर जाने से पहले उस स्थल का भौगोलिक, ऐतिहासिक, सामाजिक एवं संस्कृतिक आदि प्रत्येक दृष्टि से  अध्ययन करते हैं। प्रस्तुत है उनके  मुरुद का सिद्दी ज़ंजीरा क़िला  यात्रा का संस्मरण।) 

 

☆ मुरुद का सिद्दी ज़ंजीरा क़िला ☆

 

समुंद्र के बीचोबीच 400 सालों से अजेय इतिहास का गवाह है ये रहस्मयी मुरुद-जंजीरा किला, ये तो आप मानते ही होंगे की भारत में प्राचीन रहस्यों की कोई कमी नहीं है क्योंकि हमारा इतिहास ही इतना प्रभावशाली और रहस्यमयी रहा है की जितना जानों उतना कम है। आज हम आपको ऐसे ही एक रहस्य के बारे में बताने जा रहे है। ये किस्सा है एक ऐसे किले का जिसने कई बड़ी लड़ाईयां देखी पर फिर भी ये किला अजेय रहा है। तो जानते है इसके पीछे का रहस्य।

ये है महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के मुरुद गांव में स्थित मुरुद-जंजीरा फोर्ट है जो अपनी बनावट के लिए जाना जाता है। चारों तरफ से पानी से घिरे होने की वजह से इसे आईलैंड फोर्ट भी कह सकते है। ये आइलैंड फोर्ट भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया में अपनी बनावट के लिए मशहूर है।

मुरुद-जंजीरा भारत के महाराष्ट्र राज्य के रायगड जिले के तटीय गाँव मुरुड में स्थित एक किला हैं। यह भारत के पश्चिमी तट का एक मात्र किला हैं, जो की कभी भी जीता जा सका था । यह किला 350 वर्ष पुराना है। स्‍थानीय लोग इसे मुस्लिम किला कहते हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ अजेय होता है। माना जाता है कि यह किला पंच पीर पंजातन शाह बाबा के संरक्षण में है। शाह बाबा का मकबरा भी इसी किले में है। यह किला समुद्र तल से 90 फीट ऊंचा है। इसकी नींव 20 फीट गहरी है। यह किला सिद्दी जौहर मज़बूत किया गया था। इस किले का निर्माण 22 वर्षों में हुआ था। यह किला 22 एकड़ में फैला हुआ है। इसमें 22 सुरक्षा चौकियां है। ब्रिटिश, पुर्तगाली, शिवाजी, कान्‍होजी आंग्रे, चिम्‍माजी अप्‍पा तथा शंभाजी ने इस किले को जीतने का काफी प्रयास किया था, लेकिन कोई सफल नहीं हो सका। इस किले में सिद्दिकी शासकों की कई तोपें अभी भी रखी हुई हैं। जंजीरा किला समुद्र के बीच बना हुआ है और चारों ओर से खारे पानी से घिरा हुआ है। समुद्री तल से लगभग 90 फीट ऊंचे किले में शाह बाबा का मकबरा बन हुआ हैऔर इसकी नींव 20 फीट गहरी है।

40 फीट ऊंची दीवारों से घिरा ये किला अरब सागर में एक आइलैंड पर है। इसका निर्माण अहमदनगर सल्तनत के मलिक अंबर की देखरेख में 15 वीं सदी में हुआ था। 15 वीं सदी में राजापुरी (मुरुद-जंजीरा किले से 4 किमी दूर) के मछुआरों ने खुद को समुद्री लुटेरों से बचाने के लिए एक बड़ी चट्टान पर मेधेकोट नाम का लकड़ी का किला बनाया। इस किले को बनाने के लिए मछुआरों के मुखिया राम पाटिल ने अहमदनगर सल्तनत के निज़ाम शाह से इजाज़त मांगी थी।

बाद में अहमदनगर सल्तनत के थानेदार ने इस किले को खाली करने कहा तो मछुआरों ने विरोध कर दिया। फिर अहमदनगर के सेनापति पीरम खान एक व्यापारी बनकर सैनिकों से भरे तीन जहाज लेकर पहुंचे और किले पर कब्ज़ा कर लिया। पीरम खान के बाद अहमदनगर सल्तनत के नए सेनापति बुरहान खान ने लकड़ी से बने मेधेकोट किले को तुड़वाकर यहां पत्थरों से किला बनवाया।

इसके नाम में ही इसकी खासियत छिपी है दरअसल जंजीरा अरबी भाषा के ‘जजीरा’ शब्द से बना जिसका अर्थ होता है टापू। यमन और इथियोपिया से अफ़्रीकन हब्सी लोगों ने समुद्री लुटेरों से व्यापारिक जहाज़ों को सुरक्षा देने के लिए एक समुद्री सेना तैयार की थी वे हिंदुस्तान के अरब तुर्की होते हुए यूरोप की समुद्री यात्राओं को शुल्क लेकर सुरक्षा देते थे। उन्होंने मछुआरों से इसे हथिया लिया था।

यह रहस्मयी किला जंजीरा के सिद्दीकियों की राजधानी हुआ करता था, अंग्रजों और मराठा शासकों ने इस किले को जीतने का काफी प्रयास किया, लेकिन वह अपने इस मकसद में कामयाब नहीं हो पाए। इसकी अजेयता का कारण ये भी है की पुराने समय में पानी के रास्ते इस किले तक पहुंचना बेहद मुश्किल काम था और जब कोई सेना इसकी तरफ बढती थी तब किले में मौजूद सेना आराम से दुश्मनों को हरा देती थी। इस किले पर 20 सिद्दीकी शासकों ने राज किया। अंतिम शासक सिद्दीकी मुहम्मद खान था, जिसका शासन खत्म होने के 330 वर्ष बाद 3 अप्रैल 1948 को यह किला भारतीय सीमा में शामिल कर लिया गया।

मुरुद-जंजीरा किले का दरवाजा दीवारों की आड़ में बनाया गया है। जो किले से कुछ मीटर दूर जाने पर दीवारों के कारण दिखाई देना बंद हो जाता है। यही वजह रही है कि दुश्मन किले के पास आने के बावजूद चकमा खा जाते हैं और किले में घुस नहीं पाते हैं। अनेक वर्ष बीत जाने के बाद भी तथा चारों ओर खारा अरब सागर होने के बाद भी यह मजबूती से खड़ा है।

जंजीरा किले का परकोटा बहुत ही मजबूत है, जिसमें कुल तीन दरवाजे हैं। दो मुख्य दरवाजे और एक चोर दरवाजा। मुख्य दरवाजों में एक पूर्व की ओर राजापुरी गांव की दिशा में खुलता है, तो दूसरा ठीक विपरीत समुद्र की ओर खुलता है। चारों ओर कुल 19 बुर्ज हैं। प्रत्येक बुर्ज के बीच 90 फुट से अधिक का अंतर है। किले के चारों ओर 500 तोपें रखे जाने का उल्लेख भी कहीं-कहीं मिलता है। इन तोपों में कलाल बांगड़ी, लांडाकासम और चावरी ये तोपें आज भी देखने को मिलती हैं।

कोई बताने वाला नहीं मिलता कि ज़ंजीरा कैसे जाएँ। जितने लोग उतनी बातें। यदि आप जाना चाहते हैं तो गेट वे आफ इंडिया पहुँचें, वहाँ से मंडवा के लिए फ़ेरी टिकट 75 रुपयों में ख़रीदें। फ़ेरी आपको मंडवा उतार देगी। वहाँ से फ़ेरी वालों की बस आपको उसी किराए में अलीबाग़ तक के जाएगी। अलीबाग़ से 65 किलोमीटर की दूरी पर मरुद गाँव है। अलीबाग़ से मुरुद सरकारी बस से जाया जा सजता है या आप टैक्सी या ऑटो से भी 2000-2500 में जाना-आना कर सकते हैं। आपको यदि रुकना है तो रास्ते में काशिद समुद्री बीच पर होटेल गेस्ट हाउस मिल जाते हैं। अलीबाग़ से स्कूटर या बाइक भी 600 रुपए प्रतिदिन किराए पर मिल जाती हैं। आपके पास ड्राइविंग लाइसेंस होना चाहिए। काशिद के आगे ख़ोरा बंदर गाँव हैं वहाँ से 40 रुपयों में फेरी ज़ंजीरा क़िला तक जाने-आने का शुल्क लेती है।

© सुरेश पटवा

 

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments