श्रीमद् भगवत गीता

पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

द्वितीय अध्याय

साँख्य योग

( अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद )

(कर्मयोग का विषय)

त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन ।

निर्द्वन्द्वो नित्यसत्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्‌।।45।।

 

त्रिगुण विषय से युक्त है वेद तू त्रिगुणातीत

हो,अर्जुन निद्र्वन्द औ मन से भावातीत।।45।।

 

भावार्थ : हे अर्जुन! वेद उपर्युक्त प्रकार से तीनों गुणों के कार्य रूप समस्त भोगों एवं उनके साधनों का प्रतिपादन करने वाले हैं, इसलिए तू उन भोगों एवं उनके साधनों में आसक्तिहीन, हर्ष-शोकादि द्वंद्वों से रहित, नित्यवस्तु परमात्मा में स्थित योग (अप्राप्त की प्राप्ति का नाम ‘योग’ है।) क्षेम (प्राप्त वस्तु की रक्षा का नाम ‘क्षेम’ है।) को न चाहने वाला और स्वाधीन अन्तःकरण वाला हो।।45।।

 

The Vedas deal with the three attributes (of Nature); be thou above these three attributes, O Arjuna! Free  yourself  from  the  pairs  of  opposites  and  ever  remain  in  the  quality  of  Sattwa (goodness), freed from the thought of acquisition and preservation, and be established in the Self. ।।45।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

मो ७०००३७५७९८

(हम प्रतिदिन इस ग्रंथ से एक मूल श्लोक के साथ श्लोक का हिन्दी अनुवाद जो कृति का मूल है के साथ ही गद्य में अर्थ व अंग्रेजी भाष्य भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे।)

 

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments